कशेरूक दण्ड (Vertebral column)

 कशेरूक दण्ड (Vertebral column):-

                                                                             
मेरुदंड खोपड़ी की ऑक्सीपिटल (occipital) अस्थि के ऑक्सीपिटल कॉण्डाइल (occipital condyle) से जुड़ी रहती है। यह असमान अस्थियों की बनी होती है तथा इन अस्थियों के मध्य एक केन्द्रीय गुहा होती है जिसमें मेरूरजू (spinal cord) होती है।

मेरूदण्ड या कशेरूक दण्ड को स्थिति के आधार पर पांच वर्गा में बांटा जाता है -


  1. ग्रीवा करोरूकाएँ (Cervical vertebrae)
  2. वक्षीय कशेरूकाऐं (Thoracic vertebrae)
  3. कटि कशेरूकाएँ (Lumbar vertebrae) बामर
  4. त्रिक कशेरूकाएँ (Sacral vertebrac)
  5. पुच्छ कशेरूकाऐं (Coccygeal vertebrae)
  • प्रत्येक दो कशेरूकाओं के मध्य तंतुमय उपास्थि (fibro-cartiage) की एक गद्दी होती है जिसे अन्तर-कशेरूक चकती (intervertebral disc) कहते हैं।
  • कशेरूक दण्ड की हड्डियों को आसानी से याद रखने के लिए इन्हें एक प्रकार के सूत्र (formula) के रूप में याद रखा जाता है जो विभिन्न प्राणियों के लिए निम्न प्रकार है-



1.प्रारूपिक ग्रीवा कशेरूका (Typical cervical vertebra) :-


ग्रीवा कशेरूकाओं की संख्या प्रायः सभी स्तनधारियों में सात होती है तथा गर्दन वाले भाग में पाई जाती हैं। प्रथम ग्रीवा कशेरूका को एटलस (atlas) व द्वितीय ऐकिसस (axis) कहते है। इनकी आकृति अन्य ग्रीवा कशेरूकाओं से भिन्न होती है तथा शेष पांच लगभग समान होती है जिनके मुख्य लक्षण निम्न है-


  • प्रत्येक कशेरूका में काय (body), आर्च (arch) तथा प्रवर्ध (process) होते हैं।
  • कशेरूका की body को सेन्ट्रम (centrum) कहते है। Body के नीचे की तरफ उपस्थित प्रवर्ध को अधर कंटक (ventral spine) कहते हैं।
  • सेन्ट्रम के दोनों और से अस्थियाँ ऊपर जाकर मिल जाती है और तंत्रिकीय वलय( neural ring) का निर्माण करती है। जिसकी ऊपरी सतह तंत्रिकीय चाप (neural arch ) कहलाती है।
  • न्यूरल आर्च के दोनों और पाश्श्व दिशा में transverse processes पाये जाति हैं जो दो भागों में विभाजित होकर इसकी पाश्व शाखा (lateral branch) व अधर शाखा (ventral branch) बनाते है।
  • आर्च के किनारे क्रमश: दो अग्र व दो पश्च anterior articular processes व posterior articular processes बनाते हैं जो क्रमश: आगे की व पीछे कीकशेरूका से जुड़ने के स्थान है।
  • आर्च के पृष्ठ (dorsal) पर मध्य में पृष्ठ कंटक (dorsal spine superior spine) होता है।
  • अनुप्रस्थ प्रवर्ध (transverse process) के आधार पर एक छिद्र होता है जिसे foramen transversarium कहते हैं।
  • कशेरूका के केन्द्र में काय (body) के ऊपर स्थित छिद्र को कशेरूक महारन्ध्र (vertebral foramen) कहते है।

एटलस (Atlas) :




  • यह प्रथम ग्रीवा कुशेरूका होती है।
  • इसमें कंटक (spine) व प्रवर्ध (process) अनुपस्थित होते है।
  • इसकी काय (body) आगे की ओर ऑक्सीपिटल कॉण्डाइल से व पीछे की ओरएक्सिस (axis) कशेरूका से जुड़ी रहती है।


एक्सिस (Axis) :


  • यह द्वितीय ग्रीवा कशेरूका होती है।
  • इसमें पृष्ठ कंटक (dorsal spine) चौड़ा तथा आगे की ओर बढ़ता हुआ होता है।
  • काय (body) आगे की तरफ बढ़कर चौड़ी संरचना dens का निर्माण करती है।
  • Transverse process छोटे व पीछे की ओर बढ़ते हुए होते हैं।


2.प्रारूपिक वक्षीय कशेरूका (Typical thoracic vertebra):-



  • ये वक्षीय भाग में पाई जाती है तथा पसलियों (ribs) से जुड़ी हुई होती है।
  • इनमें स्पाइनस प्रोसेस अधिक लम्बा होता है जो कंधों के ऊपर ऊभार बनाते जिसे विदर (wither) कहते है।
  • इनमें अनुप्रस्थ प्रवर्ध छोटे, दृढ़ व मोटे होते है तथा इनमें पसलियों (ribs) से जुड़ने के लिए योजक सतह (articular surface) होती है।
  • इसकी काय (body) लम्बी व बीच से सिकुड़ी हुई होती है।
  • न्यूरल आर्च (neural arch ) छोटी, होती है ।


3. प्रारूपिक कटि कशेरूका (Typical lumbar vertebra):-



  • इन कशेरूकाओं में काय (body) मध्य से अधिक सिकुड़ी हुई तथा काफी चौड़ी होतो है।
  • आर्च (arch) प्रथम तीन कशेरूकाओं में बराबर आकृति की तथा बाद वाली कशेरूकाओं में अधिक ऊँची होती है।
  • इन कशेरुकाओं में अनुप्रस्थ प्रवर्ध (transverse process) बहुत लम्बे तथा प्लेट की आकृति के होते है जो आगे की ओर झुके हुए एवं फैले हुए रहते है।
  • पृष्ठ कंटक (dorsal spine) छोटे व चपटे होते हैं।
  • इनमें जुड़ने वाली सतहें (articular surfaces) अधिक विकसित होती है।


4.त्रिक कशेरुकाएँ (Sacral vertebrae) :-



  •  ये पुट्ठे की कशेरूकाऐँ है जो कुल पाँच होती है जो आपस में जुड़कर एकल अस्थि (single bone) का निर्माण करती है।
  • इनके कंटकीय प्रवर्ध (spinous processes) आपस में जुड़कर medial sacral crest बनाते हैं जो संरचना में उत्तल (convex), मोटा व खुरदरा होता है।
  • इनमें योजक प्रवर्ध (articular processes) आपस में जुड़कर lateral sacral crest बनाते हैं।
  • इसकी पाश्श्व सतह इलियम अस्थि (ilium bone) से जुड़ी होती है।
  • यह आकृति में त्रिकोणाकार व लम्बाई में मुड़ा हुआ होता है, इस कारण इसकी अधर सतह (ventral surface) अवतल (concave) होती है जिसे पेल्विक सतह (pelvic surface) भी कहते है।
  • इस पेल्विक सतह पर चार जोड़ी (four pairs) ventral sacral foramen होते हैं।
  • Lateral crest के ऊपर चार पृष्ठ सेक्रल महारन्ध्र (dorsal sacral foramen)  होते हैं।
  • तंत्रिकीय वलय (neural ring) त्रिकोणाकार होती है।


5.पुच्छ कशेरुकाएँ (Coccygeal vertebrae) :-



  •  ये कशेरुकाएं पूंछ (tail) में पाई जाती है।
  • प्रारम्भ की 6-7 कशेरुकाएँ आदर्श कशेरुकाओं के समान होती है परन्तु इसके पश्चात् इनके अनुप्रस्थ प्रवर्ध व आर्च छोटे होते जाते है तथा अंत में केवल इनकी काय (body) ही रह जाती है।
  • इनका सेण्ट्रम लम्बा तथा संकरा होता है।

सिन्सैक्रम (Synsacrum) :

                                            मुर्गे में कटि (lumbar) व त्रिक (sacrum) कशेरुकाएँ अपस में जुड़ी हुई होती है                                                    तथा इनकी कुल संख्या 14 होती है इन्हें सिन्सैक्रम कहते हैं।

पाइगोस्टाइल (Pygostyle) :

                                              मुर्गे में अन्तिम तीन पुच्छ कशेरुकाएं (coccygeal vertebrae) एक पिरामिड                                                    जैसी संरचना का निर्माण करती है जिसे पाइगोस्टाइल कहते है।

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